दीपलाना के विशेष व्यक्ति
अनोखा ‘खोजी’
“ दानों बाणियो “ के नाम से पहचाने जाने
वाले व्यक्ति दानाराम(आईदान) पिता हुकमचन्द चितलांगिया थे l इनके पिता
राणासर(सरदारशहर) से दीपलाना आकर बस गये थे l इनका जन्म यहीं सन. 1893 में हुआ तथा
प्रारम्भिक शिक्षा दीपलाना में हुई l इनके जन्म के 25 वर्ष बाद इनके पिता का
देहान्त होने के कारण घर की सारी जिम्मेवारी आ गई l
एक बार
गाँव भुकरका के गढ़ से ऊँटों की चोरी हो गई l चोरी पकड़ने के लिये दानाराम को बुलाया
गया और तीन माह बाद ऊँटों के चोर को पकड़ लिया l इनका इतना दिमाक चलता था कि आदमी
के पैरों के निशान के साथ साथ ऊंटों के पैरों के निशानों को भी पहचान लेते थे l
एक बार दानाराम की परीक्षा लेने
के लिये गाँव करोति के रहने वाले श्योकरण शर्मा अपने पैरों व ऊँट के पैरों पर बूई बांधकर खेत
से बेरी का पलूंड(टहनी) काटकर ले आये l दूसरे दिन दानाराम खेत गये तो देखा कि कोई
निशान नहीं है बस एक जगह हथेली का निशान रह गया था l दूसरे साल गर्मियों में पानी की कमी में कुएँ से पानी लेने के लिये श्योकरण गया, वहाँ पर दानाराम भी था l जैसे ही
श्योकरण ने हथेली रखी वैसे ही दानाराम ने हाथ पकड़ लिया और कहा कि पिछली साल वाला जो पलूंड तूं मेरे खेत से काटकर लाया था वह मेरे घर पर भिजवा देना l तब उन्होंने कहा कि मै तो
तुम्हारी परीक्षा ले रहा था l दानाराम की मृत्यु 77 वर्ष की आयु में सन. 1970 में
हुई l
गाँव के प्रथम इंजीनियर
“कॉमरेड” के नाम से पहचाने जाने वाले ,स्वयं को
“अन्तरराष्ट्रीय नागरिक” मानने वाले श्री सज्जन कुमार एक विशेष व्यक्तित्व के धनी है l इन्होने 2
जुलाई 1954 को हरदयाल सिंह बेनीवाल के घर में जन्म लिया,इनकी प्रारम्भिक शिक्षा
रामगढ शेखावाटी,परलिका व जोधपुर आदि के स्कूलों में हुई l सिविल इंजीनियरिंग की
पढाई राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज जोधपुर से सन.1976
में पूर्ण की l 20 वर्ष की उम्र में राजनेतिक गुरु श्रीमान आर.पी. सर्राफ के सानिघ्य में इनके विचारों में एक
क्रांतिकारी परिवर्तन आया ; अन्याय और असमानता ने इनको झकझोर दिया l तब से कोरा
स्वार्थ,व्यक्तिवाद,धर्म और राष्ट्रवाद से भी ऊपर उठकर इन्होने सम्पूर्ण जगत के
लिये जीने का प्रण लिया l अपने गुरु “सर्राफ साहब” के निर्देशन में वैज्ञानिक
अध्ययन किये l न विवाह किया,न नौकरी की, अपनी सारी उर्जा और ज्ञान वैज्ञानिक समझ
और प्रकृति को समर्पित कर दिया l आज इनकी
आयु भले ही 65 वर्ष हो गई है,फिर भी (N.H.C.P.M.) प्रकृति मानव केन्द्रित जन आन्दोलन के माध्यम
से ये भारत ही नहीं कई देशों में जाने जाते है l दीपलाना गाँव को अपने इस पहले इंजीनियर
पर गर्व है l
छोटूनाथ
छोटूनाथ को ‘महाराज’ के नाम से जानते है l छोटूनाथ
हरियाणा के रहने वाले थे,और तीन भाई थे l दो भाईयों का स्वर्गवास होने के कारण
सदमे में सन्यासी हो गये थे और घूमते फिरते दीपलाना आकर वि.स.2001 के लगभग जोहड़ की
पाळ (मिट्टी की दीवार) पर रहने लग गये l किसी कि भी गाय,भेंस पालतू पशु को जोहड़ पर
पानी नहीं पीने देते थे l तथा इस्त्रियों को जूते, चप्पलें उतार कर पानी पीने या
भरने देते थे l
प्यारेलाल शर्मा(करोति) ने बताया
कि दीपावली के त्यौहार के मोके पर
गुमानाराम बेनीवाल महाराज के लिये खीर ले कर गये l महाराज ने खीर को मिट में बदल
दिया और गुमानाराम को कहा कि क्यों मेरा धर्म भृष्ट कर रहे हो ? गुमानाराम ने माफी
मांगी ओर कहा ऐसा केसे हुआ ? तो महाराज ने खीर को ढकने के लिये कहा तथा बाद में
कपड़ा हटाया तो खीर वापिस बन गई l
एक
दूसरी घटना,चूनीलाल बेनीवाल के पास महाराज का काफी आना जाना था l तो चूनीलाल ने
सिगरेट पीने की मांग की, महाराज ने उनके खेत के मकान के गाटर में सिगरेट ही सिगरेट
कर दी ओर बोला कि जब तक वह सिगरेट की डब्बी अपनी जगह से नही हिलेगी सिगरेट कभी
खत्म नहीं होगी l बाद में किसी नहरी कर्मचारी के आने पर किसी ने वह सिगरेट की
डिब्बी निकाल ली,क्यों की उसने सोचा की एक सिगरेट निकाल कर देंगे तो अच्छा नहीं
लगेगा l उस दिन के बाद डिब्बी में सिगरेट ख़त्म हो गई l
इस प्रकार अनेक घटना घटित हुई है, आज
जो इसको पढ़ता है सही नहीं मानता, मगर घटना के वक्त वाले व्यक्ति आज भी जिन्दा है
जो बता रहें है l कुछ लोग इनको जादूगर मानते थे ओर कुछ शक्ति मानते थे l इनके पास
एक चेली भी थी बाद में दोनों बोझला(भादरा) चले गये l तथा अन्त में उनकी मृत्यु भी
वहीं पर हुई
बहुत ही अच्छा
जवाब देंहटाएंGood
जवाब देंहटाएंNice one
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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